अभी-अभी समाचार लहराया है कि वीसी की मीटिंग में स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया गया है कि अब हर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोज़ाना २०७ फ़ीट ऊँचा तिरंगा लहराना अनिवार्य होगा ....
निर्णय का "स्वागत" करते हुए मेरी प्रतिक्रिया ....
ये २०७ फ़ीट का क्या औचित्य ?? .. यदि मैं चाहूँ कि चूँकि ५६ x ४ = २२४ होता है इसलिए झंडे की ऊंचाई २०७ के बजाय २२४ फ़ीट होना थी - तो क्या मेरी बात को समर्थन मिलेगा ??
और यदि मैं ये कहूँ कि झंडे को लहराते हुए गुंडागर्दी करना भी देशद्रोह माना जाए - जैसा कि कल पटियाला कोर्ट में "कालकोटीय" वकीलों को करते देखा गया था - तो क्या मेरी बात का कोई विरोध करने की हिम्मत करेगा ?? .... है किसी में दम ??
और यदि मैं ये कहूँ कि इस देश की सत्तासीन सरकार के हर सांसद या विधायक को रोज़ाना एक बार तिरंगे को हाथ में लेकर सार्वजनिक तौर पर ये कहना होगा कि - "मैं तिरंगे को साक्षी मानकर शपथ लेता हूँ कि मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जो इस देश के हित में ना हो" .... मसलन ऊटपटांग नियम नहीं बनाना - किसी को गाली नहीं देना - कोई भ्रष्टाचार नहीं करना - इत्यादि !! .... तो तब भी क्या हर "मादरेवतन का हितैषी" मेरा समर्थन करेगा ??
मेरी प्रतिक्रिया के बाद मेरी समझाइश ....
राष्ट्रभक्ति सिखाना या उसके सिखाने कि चेष्टा करना स्मृति ईरानी जैसी शख्सियत के बूते का नहीं - और "संघी" सरकार के थोपने की संस्कृति के रहते तो बिलकुल भी संभव नहीं .... मुझे डर है कि मोदी सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी को प्रदर्शित करने के चक्कर में कोई देशभक्त इस झंडे लहराने के निर्णय का विरोध कर किसी गुंडई का शिकार ना हो जाए .... इसलिए मेरी सभी मित्रो को समझाइश है कि ऐसे निर्णयों का सीधे सीधे विरोध नहीं करें .... वैसे करें भी तो आपको सलाम .. !! जय हिन्द !!
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