हमने कई बार "देश की एकता" पर बहुत अच्छा-अच्छा सुना है - और इस पर गर्व किया है - और इसे चाहा है - और इसे सराहा है - और इसकी ज़रुरत महसूस की है .... और इस "एकता" को जिया है ....
और हमेशा से ये पाया भी था कि इस देश की १०० करोड़ से ऊपर जनता ज्यादातर मुद्दों पर "एक" रही है - और यदि कई मुद्दों या मामलों में वो एक नहीं भी रही है तो उस तथ्य को भी "अनेकता में एकता" कहा गया - माना गया - और उस पर भी गर्व किया गया ....
यानि कई "अनेकताओं" को भी इस देश ने "एकता" के साथ आत्मसात किया ....
पर अब क्या हो गया ??
बड़े खेद का विषय है कि आज तो मुझे ये देश हर छोटी-बड़ी बात पर बंटा-बंटा सा ही लग रहा है ....
फिर चाहे वो कोई भी मुद्दा हो या कोई संस्था हो या पार्टी हो या व्यक्ति हो .... सब कुछ बंट गया सा लगता है .... यहाँ तक कि पाकिस्तान से संबद्ध हर मुद्दे पर भी पूरे देश में एक स्वर एक आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है ....
इसलिए प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों ?? .. इसका जवाबदार कौन ??
मेरी प्रतिक्रिया ....
मुझे लगता है कि इसके पीछे वो "असहिष्णुता" ही दोषी है जो सत्तापक्ष और बहुसंख्यकों के द्वारा अतिउत्साह और घमंड में विपक्ष और अल्पसंख्यकों पर थोपी जाने से उपजी है ....
और इसकी जवाबदारी आज के अपरिपक्व नेतृत्व यानि मोदी जी को ही वहन करनी होगी - भले ही वो इसके लिए सीधे-सीधे जवाबदार ना भी हों ....
नहीं तो फिर भक्त मुझे बताएँ कि मैं अपना दुखड़ा किस के पास जाकर रोऊँ ?? ....
किस से ये पूछूँ कि वैलेंटाइन डे पर इतना उग्र विरोध मारपीट के साथ जो कल ही हुआ - वो क्यों हुआ ?? .. और आज बहस केवल जेएनयू मसले पर ही क्यों ?? .... क्या इस देश में वैलेंटाइन डे मना रहे एक युवा और युवती को वो लोग पकड़ कर सरेआम पीट देंगे जिन्हें अपनी अक्ल अव्वल होने का गुमान हो गया है ?? .. और फिर पूरा देश केवल देखेगा और "एक" होकर निडर होकर उनको न्याय दिलाने की बात भी नहीं कहेगा ?? .. और वो पिटे युवा युवती भविष्य में आपको या आपकी सत्ता को या आपकी व्यवस्था को गाली भी नहीं देंगे .. और बस "देश की एकता" को ही ओढ़े रहेंगे ????
क्या साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए अख़लाक़ के परिवार को इस देश को या इस समाज को या हमको आपको धिक्कारने का अधिकार भी नहीं है ?? .. क्यों ये जरूरी है कि वो संतप्त परिवार "देश की एकता" का कम्बल ओढ़े दुबके रहे ??
नहीं ऐसा होता नहीं है - ऐसा होगा भी नहीं - ऐसा होना भी नहीं चाहिए .... इसलिए समझाइश देना चाहूँगा जिसे चेतावनी के रूप में ही लेना श्रेयस्कर होगा कि ....
"देश की एकता" तभी तक जब ये स्वतः होगी - सर्वन्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी .. अन्यथा ये "एकता" किसी चिड़िया का नाम नहीं जो पकड़ कर अपने बस में की जा सके .... और मुझे लगता है ये बात समझना ही होगी - और नासमझों को समझाना भी होगी .... पर प्यार से .... बड़े प्यार से .... जैसे अभी मैं समझाने का प्रयास कर रहा हूँ .... है ना !!
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