Friday 5 February 2016

// केजरी चले गए बेंगलुरु !! .. विलापित विलोपित विचलित ....//


दिल्ली में फ़ैल गया कचरा .... और केजरीवाल चले गए बेंगलुरु ....
और केजरी दिल्ली क्या छोड़े विलापित और विलोपित सभी विचलित हो उठे ....

विलापित मतलब भाजपाई जो ६७ सीटों के चक्कर में विलाप ही विलाप करते रहे हैं .... दिल्ली में कचरा - कचरे में कीचड - कीचड में कमल थामे बेचारे रोना रो रहे - हाय !! केजरी बेंगलुरु क्यों चले गए ??

और विलोपित मतलब कोंग्रेसी जो आर्यभट्ट को आलिया भट्ट का रिश्तेदार मान इसलिए कोसते हैं कि उसने '0' की उत्पत्ति करी ही क्यों .... पर फिर भी '0' से '10' दिखने के प्रयास में वो भी खिसिया रहे हैं - हे नाथ ! हे केजरीनाथ !! तुम बेंगलुरु क्यों चले गए ??

मेरी प्रतिक्रिया ....

क्या है कि जब परिवार का कोई महत्वपूर्ण सदस्य बाहर चला जाता है तो सबको उसका अभाव अखरता है - और वो उसे याद करते ही हैं .... पर यदि जाने वाला सदस्य "बाप" हो तो फिर तो बच्चे रोने भी लगते हैं ....

पर जब परिवार का कोई फ़ड़तूस आवारा सा सदस्य बाहर जाता है तो किसी को नहीं अखरता - क्योंकि वो तो जाता ही है - वो तो रहता ही बाहर है - उसकी तो संगत ही निकम्मों की है - बिगड़ैल रईसों की है -  जाए तो जाए - क्या फर्क पड़ता है - घर में बैठ के भी क्या उखाड़ रहा था - अच्छा है बाहर ही रहे ....

पुनश्चः -

मैं सोच रहा था मोदी बहुत दिन हुए बाहर नहीं गए .... शायद विलापित इस कारण भी तो दुखी नहीं ?? .. और विलोपित इस कारण तो नहीं कि हाय हम ना हुए - नहीं तो हम भी बाहर आवारागर्दी कर रहे होते ....

खैर मैं विलापित और विलोपित समूह को सांत्वना देना चाहूँगा कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता - "बाप" शीघ्र घर लौटने वाला है ....

वो पहले भी बाहर गया था - बेंगलुरु ही गया था - तरोताज़ा होकर आया था - और लौटने पर २ सूरमाओं को ठिकाने लगाया था .... देखें इस बार कौन ठिकाने लगता है .... हा !! हा !!

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