Tuesday 9 February 2016

// मध्यप्रदेश में मद्य हेतु आबकारी नीति - सत्ता के नशे की उल्टी ..//


हमारे मध्यप्रदेश की 'आब' के दर्शन करना हों तो जरा इस प्रदेश की 'मद्य' विषयक 'आबकारी' नीति पर गौर फरमाएं ....

राजनीतिज्ञों को अपवाद मान लें तो मध्यप्रदेश के लोग सामान्यतः होश में रहने वाले लोग हैं - इसलिए दारू का विरोध करते आए हैं ....

पर दारू से सरकार को नंबर १ में बहुत आर्थिक लाभ पहुँचता है .. और नंबर २ में तो मत पूछो !! .. लाभ आर्थिक पेटियों और खोखों का होता हैं .. मसलन इस धंधे में १ पेटी का मतलब १० लाख और १ खोखे का मतलब १ करोड़ ....

और इसलिए इस प्रदेश की आब में बट्टा लगाते हुए इस प्रदेश की जनभावनाओं को ताक में रख आबकारी नीति में 'जनहित' के बजाए 'जनहिट' वाले परिवर्तन होते आए हैं ....

आबकारी नीति में ऐसा ही एक 'जनहिट' परिवर्तन कुछ दिन पहले घोषित हुआ जिसके अनुसार हर व्यक्ति को अपने घर में १०० बोतल शराब रखने का अधिकार दे दिया गया था ....

और ऐसी घोषणा होते ही मेरे एक जाने पहचाने दारुप्रिय राजनीतिक व्यापारी के चेहरे पर आब आ गई - और आ के छा गई .... कहने लगे कि अब तक तो हम 'कारोबार' करते थे - अब हम 'घरबार' का भी ध्यान रख सकेंगे ....

आपको लगेगा कि उस महान व्यक्ति का कुछ ह्रदय परिवर्तन हुआ होगा - पर नहीं - क्योंकि उनके कहने का आशय यह था कि अब तक तो वो उनकी कार में दारू दंगड़ के साथ आइस सोडा नमकीन सबका परमानेंट इंतज़ाम रखते थे जिसे वे 'कारोबार' कह रहे थे - यानि 'कार' में 'बार' .. पर अब वो 'घर' में 'बार' खोल देंगे यानी 'घरबार' ....

पर उसी आबकारी नीति की घोषणा होते ही जमकर जनविरोध भी शुरू हो गया था - और बहस भी चरम पर पहुंच गई थी .... और जनविरोध के दौरान हमारे सीधे-सादे दिखने वाले या सधे-साधे 'मामा' मुख्यमंत्री शिवराज जी के चेहरे की आब भी जाती रही थी ....

बेचारे क्या करें ? राजनीतिक कारणों से और विफलता के कारण मोदी तो कुछ पैसे लत्ते दे नहीं रहे - सारे विकास के कार्य ठप्प से हो चले हैं - फिर सरकार को चलाने और बचाने के लिए पैसे कहाँ से लाएं ?? .. और उधर टुच्चे चंगुओं मंगुओं दारु कुट्टों और 'कारोबारियों' को नंबर २ की कमाई कैसे करवाई जाए जो आगामी चुनावों में भी मोदी लहर के नामे जीत दिला सके .... जीत !! आब के साथ और आबकारी के अर्थलाभ के साथ ....

पर तमाम स्वहित बातों के विरुद्ध 'जनहिट' की बात पर जनाक्रोश के उमड़ते ही हमारे 'मामा' मुख्यमंत्री का नशा भी जल्दी उतर गया - और आबकारी नीति में से १०० बोतल के प्रावधान को विलोपित कर दिया गया .... जिसका मतलब ये हुआ कि अब आम आदमी अपने घर में 'कानूनन' १०० बोतल शराब नहीं रख सकेगा ....

और मैं सोच रहा हूँ कि क्या एक आम आदमी अपने घर में १०० बोतल शराब रखना चाहेगा ?? .. या रखता होगा ?? .. या नई नीति के बाद रखता या रख लेता ?? .... या क्या उसकी १०० बोतल शराब रखने की हैसियत भी है ?? .. या उसे आवश्यकता भी है ?? .. या किसी आम आदमी ने ऐसी कोई वाहियात मांग भी की होगी ????

और क्या मामा के कारोबारी और चहेते और चंगु मंगू को कोई १००० बोतल भी रखने से कभी भी रोक सकेगा ??

तो फिर प्रश्न उठता है कि ये सब क्या हुआ क्यों हुआ ????

मैं बताता हूँ - बिना मद्य बिना नशे मुद्दे की बात ....

नशा बहुत बुरी चीज़ है - और सत्ता का नशा तो बहुत ही बुरा .... और ऐसा नशा करके कई बार सत्ताधीशों को उल्टी करते देखा गया है .. जिसे सत्ता की आब की उल्टी कहते हैं .. जो सत्ता की उल्टी गिनती की शुरूआल भी होती है .... बाकि यदि आप बिन पिए होंगे तो समझ ही गए होंगे .... है ना !!

// मेरे 'fb page' का लिंक .... << https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl >> //

No comments:

Post a Comment