Friday 1 July 2016

// क्या दूध घी के बजाय स्वर्णयुक्त पवित्र गौमूत्र का उपयोग ज्यादा पुण्य नहीं देगा ?? ..//


अब फ़िल्मी कलाकार इरफ़ान भाई ने कुछ यूँ यूँ कह दिया है ....

"कुर्बानी का मतलब अपनी कोई अजीज चीज कुर्बान करना होता है .. ये नहीं कि बाजार से आप कोई दो बकरे खरीद लाए और उनको कुर्बान कर दिया" ....
"आपको उन बकरों से कोई लेना-देना नहीं है तो वो कुर्बानी कहां से हुई ?? .. इससे कौन-सी दुआ कुबूल होती है?? .. हर आदमी अपने दिल से पूछे कि किसी और की जान लेने से उसको कैसे पुण्य मिल जाएगा ??" ....
"हमारे जो भी त्योहार हैं उनका मतलब हमें वापस से समझना चाहिए कि वे किसलिए बनाए गए हैं" ....
"सौभाग्य है कि एेसे देश में रह रहा हूं जहां हर धर्म का सम्मान होता है" ....
"जिस तरह मदारी डमरू बजाकर वादा करता था कि सांप और नेवले की लड़ाई दिखाएगा पर कभी दिखाता नही था - ऐसे ही वादे नेता करते है जो कभी पूरे नही कर पाते है" ....

और बहस छिडनी थी - छिड़ी - और इसलिए मेरी प्रतिक्रिया ....

मुझे संतोष है कि तर्कसंगत सोचने वालों ने भी अब काफी कुछ कहना शुरू कर दिया है ....
और अतार्किक सोचने वाले कपडे फाड़ने के अलवा कुछ ज्यादा कर नहीं पा रहे हैं ....

इसलिए मेरा मूड हो आया कि जब इरफ़ान भाई खुल के कुछ कह सकते हैं तो मैं भी क्यूँ चुप रहूँ ....
अतः मेरे भी तर्क पर गौर हो जाए ....

क्या कुर्बानी और दान में कुछ ज़्यादा ही अंतर है ?? .. क्या दोनों के मूल में त्याग नहीं है ?? ..
यदि है भी तो क्या हिन्दुओं को खाद्य पदार्थ की 'परसादी' कर उसे खाने के बजाय व्यर्थ कर देना भी क्या पुण्य हो सकता है .... मसलन दूध से मूर्तियों को नहलाना - तेल चढ़ाना - हवन में घी चावल आदि फूंकने से क्या पुण्य मिल सकता है .... आदि !! ....

क्या दूध तेल के बजाय स्वर्णयुक्त पवित्र गौमूत्र का उपयोग ज्यादा पुण्य नहीं देगा ?? .... यदि नहीं - तो क्यों ?? ....

और सबसे महत्वपूर्ण - वो नेता जो मदारी माफिक डमरू बजाकर कई वादे किये थे और पूरे नहीं किये हम उनकी कुर्बानी क्यूँ ना दे दें ?? .... क्या ऐसी कुर्बानी से पुण्य नहीं मिलेगा ?? .. नहीं भी मिलेगा तो भी क्या पाप चढ़ जाएगा ?? .. नहीं चढ़ेगा तो फिर हिचक क्यों ?? .. अरे चलो मदारी ना सही - क्यों ना उसके बंदर को ही गौमूत्र से नहला धुला बली का बकरा बना दिया जाए ?? .. और मदारी को खिलवाड़ करने से रोका जाए ?? ....

और क्यों ना हम सभी अपने अपने धर्मों के बंधनों से ऊपर उठकर तर्कसंगत सोचते हुए उस ऊपर वाले से बिना डरे इंसानियत के हक़ में ही कुछ करने की ठानें ?? ....

सोचियेगा !! बिना डमरू बजाए और सुने .. शांत और एकाग्र चित्त हो सोचियेगा .... धन्यवाद !!!!

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