मोदी जी प्रधानमंत्री के रूप में आगामी चुनाव होने वाले प्रदेशों में शिलान्यास या
उदघाटन करने पहुँच रहे हैं .... जहाँ सार्वजनिक समारोह में भाषण भी हो रहे हैं
.... समारोह में प्रोटोकॉल और प्रचलन के नाते मुख्यमंत्री भी सम्मिलित होते रहे हैं
.... पर भाषणों के दौरान मुख्यमंत्रियों की हूटिंग होती देखी गयी .... मोदी जी के भाषण
में भी प्रोटोकॉल की अवहेलना दिखी क्योंकि भाषण में चुनावी तेवर के अंश भी दिखे
.... उपरांत स्थितियां यहाँ तक बिगड़ीं कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने प्रोटोकॉल का
निर्वहन करने से इंकार करते हुए मोदी जी के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित न होने का निर्णय
कर डाला !!!!
बहस छिड़नी थी और छिड़ी हुई है .... दलील दी जा रही है कि मुख्यमंत्री इतने अलोकप्रिय
हो चुके हैं कि जनता उनकी हूटिंग कर रही है और मोदी जी दिन-ब-दिन इतने लोकप्रिय होते
जा रहे हैं कि लोग केवल उनको ही सुनना और सराहना चाहते हैं !!!! यह बात सही हो सकती
है और मुझे सही प्रतीत होती है .... यह भी कहा जा रहा है कि जब लोग मुख्यमंत्री कि
हूटिंग करें तो प्रधानमंत्री इसमें क्या कर सकते हैं और उन्हें क्यों कुछ करना चाहिए
.... जनता जाने और मुख्यमंत्री !!!!
पर इन सब बातों से भी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होते दिख रही हैं विशेषकर राज्य केंद्र के संबंधों विषयक .... और मर्यादाओं विषयक .... और इसी समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपके सामने एक काल्पनिक स्थिति रखना चाहूंगा ....
कल्पना कीजिये कि पश्चिम बगल में मोदी किसी परियोजना के लोकार्पण हेतु जाते हैं जहाँ पहले ममता बैनर्जी भाषण देती हैं तो आधी जनता हूट करती है और उसके बाद जब मोदी जी भाषण देते हैं तो फिर आधी जनता हूट करती है .... और उसके बाद भीड़ आपस में भिड़ जाती है, बलवा हो जाता है, जान माल का नुकसान होता है .... इत्यादि ....
मैं पूछना चाहूंगा कि तब जवाबदार कौन, समस्या का समाधान क्या, और समाधान प्रस्थापित करने कि जिम्मेदारी किसकी ????
अस्तु मैं यह चेताना चाहूंगा कि भीड़ भले ही आपकी प्रशंसक हो या विरोधी पर अनियंत्रित नहीं होनी चाहिए .... और तब जबकि नेता द्वारा स्वतः किये जा रहे किसी भी आयोजन में भीड़ अपेक्षित हो, तो उसे नियंत्रण में होने की नैतिक जिम्मेदारी उस नेता की ही होनी चाहिए, अन्यथा ऐसे नेता को ऐसा कोई आयोजन नहीं करना चाहिए जिसमें भीड़ की चाहत हो और अनुमानित भी हो !!!!
पर इन सब बातों से भी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होते दिख रही हैं विशेषकर राज्य केंद्र के संबंधों विषयक .... और मर्यादाओं विषयक .... और इसी समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपके सामने एक काल्पनिक स्थिति रखना चाहूंगा ....
कल्पना कीजिये कि पश्चिम बगल में मोदी किसी परियोजना के लोकार्पण हेतु जाते हैं जहाँ पहले ममता बैनर्जी भाषण देती हैं तो आधी जनता हूट करती है और उसके बाद जब मोदी जी भाषण देते हैं तो फिर आधी जनता हूट करती है .... और उसके बाद भीड़ आपस में भिड़ जाती है, बलवा हो जाता है, जान माल का नुकसान होता है .... इत्यादि ....
मैं पूछना चाहूंगा कि तब जवाबदार कौन, समस्या का समाधान क्या, और समाधान प्रस्थापित करने कि जिम्मेदारी किसकी ????
अस्तु मैं यह चेताना चाहूंगा कि भीड़ भले ही आपकी प्रशंसक हो या विरोधी पर अनियंत्रित नहीं होनी चाहिए .... और तब जबकि नेता द्वारा स्वतः किये जा रहे किसी भी आयोजन में भीड़ अपेक्षित हो, तो उसे नियंत्रण में होने की नैतिक जिम्मेदारी उस नेता की ही होनी चाहिए, अन्यथा ऐसे नेता को ऐसा कोई आयोजन नहीं करना चाहिए जिसमें भीड़ की चाहत हो और अनुमानित भी हो !!!!
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