मुझे लगता है कि बेचारे जो लंगड़े और पंगु हैं, जो खुद कहीं आ जा नहीं सकते, भागा दौड़ी
नहीं कर सकते - वो कुंठित हो हर चलने फिरने वाले भाग दौड़ करने वाले काम काज करने वाले
को दिन रात - भगोड़ा ! भगोड़ा !! भगोड़ा !!! भगोड़ा !!!! कहते रहते हैं - और अंदर से स्वयं
कुंठित होते हैं और हीन भावना के शिकार होते रहते हैं ....
ऐसे कुंठित लंगड़े पंगु तो पूरे समाज के लिए भी बहुत घातक होते हैं .... इन्हे तो वे
लोग ही पसंद आते हैं जो लंगड़ा-लंगड़ा कर चलते हों पर फिर भी आगे नहीं बढ़ पाते हों
.... जैसे उदहारण के लिए जो लोग दिल्ली चुनाव का क्या करना तय नहीं कर पा रहे हों ऐसे
लोग इनको विशेष रूप से पसंद आते हैं ....
और हाँ - ये एक शब्दीय भगोड़ा-भगोड़ा का विलाप करने वालों को निश्चित रूप से "रणछोड़दास" का मतलब भी नहीं मालूम होता .... बेचारे !!!!
ऐसे बेचारों को मेरा सुझाव है कि - 3 अगस्त को 3 बजे जंतर मंतर पहुंचे - स्वास्थ्य के लिए लाभकारी रहेगा ....
और हाँ - ये एक शब्दीय भगोड़ा-भगोड़ा का विलाप करने वालों को निश्चित रूप से "रणछोड़दास" का मतलब भी नहीं मालूम होता .... बेचारे !!!!
ऐसे बेचारों को मेरा सुझाव है कि - 3 अगस्त को 3 बजे जंतर मंतर पहुंचे - स्वास्थ्य के लिए लाभकारी रहेगा ....
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