Tuesday 10 March 2015

//// आर-पार दर्शित होने पर "पारदर्शिता" ??....////


आप पार्टी में अब सही गलत खुलासे हो रहे हैं - किए या करवाए भी जा रहे हैं ....
और तथाकथित खुलासों के बाद योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण द्वारा पारदर्शिता की दुहाई दी गई है - सच्चाई की जीत की बात कही गई है - और पार्टी नहीं छोड़ने की बात कही गई है - और शाम तक अपना पक्ष सार्वजनिक करने की बात कही गई है - आदि इत्यादि !!!!

ऐसे भारी भरकम वक्तव्यों के बीच - मेरी विवेचना ....

लगता है योगेन्द्र यादव और प्रशांत-शांति भूषण को "आर-पार दर्शित" होने के उपरांत अब बड़ी ही देरी से और सुविधानुसार "पारदर्शिता" की बात याद आई है ....
और मैं प्रश्न करता हूँ कि जब इन महानुभावों को समझ आ ही गया था / है कि "आप पार्टी" या अरविन्द केजरीवाल ऐसे नहीं निकले जैसा की अपेक्षित था या पूर्व से उद्घोषित था - तो वो अब तक इस पार्टी में ऐसे गलत व्यक्ति का साथ देकर और यहाँ तक की उसकी तारीफ़ करते हुए अपना समय क्यूँ बर्बाद करते रहे ????
और यदि उन्होंने अभी तक पार्टी स्वयं छोड़ी नहीं है तो क्या अभी तक उन्हें पारदर्शिता के साथ खुल्लमखुल्ला बगावत नहीं कर देनी चाहिए थी ????

मित्रो मैं साफ़ देख पाता हूँ कि "पारदर्शिता" के नाम पर "ब्लैकमेल" जैसा कुछ करने का प्रयास किया जा रहा है - और इस संबंध में मैं अरविन्द केजरीवाल को सुझाव देना चाहता हूँ और उनसे अपेक्षा रखता हूँ कि - यदि अरविन्द केजरीवाल स्वयं ने कोई गलती नहीं की है तो "पारदर्शिता" की परवाह किये बगैर अपनी दक्षता और सक्षमता के साथ प्रकरण में ठोस निर्णायक कार्यवाही करने से नहीं हिचकें .... और मुझे पूरा भरोसा है कि वे ऐसा ही कुछ करेंगे !!!!

स्पष्ट कर दूँ कि राजनीति में और यहाँ तक कि व्यक्तिगत जीवन में भी कभी कोई १००% पारदर्शिता ना तो अपना सकता है और ना ही अपनाना चाहिए - और जो व्यक्ति मेरी बात से सहमत ना हों वो स्वयं के जीवन में पारदर्शिता का स्तर सबसे पहले टटोल कर देखेंगे तो सब समझ आ जाएगा !!!!

और हाँ जिनको मेरी बात सही नहीं लगी हो उनसे यह भी अनुरोध है कि सबसे पहले तो उन्हें ये कामना और प्रयास करना चाहिए कि या तो योगेन्द्र-प्रशांत-शांति पार्टी से पृथक हों या अरविन्द केजरीवाल .... शायद अब दोनों पक्षों का साथ रहना किसी डॉक्टरी नुस्खे के परिपालन में आवश्यक कदापि नहीं है ....
और मैं समझता हूँ कि यदि योगेन्द्र-प्रशांत-शांति भी अपनी जगह अपने को सही मानते हैं तो उन्हें भी तत्काल 'आप' पार्टी छोड़ 'आप' से बढ़िया पार्टी बना कर अपनी बात साबित करनी चाहिए - एक अच्छी पार्टी से दो अच्छी पार्टियां देश समाज का भला ही करेंगी !!!!

और मित्रो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हताशा का तो कोई कारण ही नहीं है - हताशा तो तब होती जब दिल्ली में मोदी-शाह-बेदी-भूषण जीत जाते - ऐसे प्रकरणों से तो पार्टी की और भलाई ही होनी है .... कभी किसी एक-आध व्यक्ति के विरोध से या विलुप्त होने से कभी किसी जीवंत संस्था का काम रुकता नहीं है - बल्कि और उत्कृष्ट होता चलता है .... पर याद रखें संस्था को खड़ा करने में किसी व्यक्ति विशेष का हाथ होना अपरिहार्य है - संस्थाएं हवा में स्वतः खड़ी नहीं होतीं - और केवल अच्छे व्यक्ति ही अच्छी संस्थाओं का सृजन कर पाते हैं - 'लल्लू-लचर-लाचार' नहीं !!!!
!!!! धन्यवाद !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

No comments:

Post a Comment