Wednesday 4 March 2015

//// डरे को डराने में - हारे को हराने में - मरे को मारने में - कैसा पुरुषार्थ ??....////


मोदी जी जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से मैं देख रहा हूँ कि स्वयं मोदी जी भाजपा और उनके सारे प्रवक्ता कभी कांग्रेस की तो कभी पूर्व सरकारों की तो कभी अन्य विपक्षियों की निंदा और उपहास करने में ही लगे पड़े हैं - जब देखो तब वे अपनी गलती छुपाने के लिए दूसरों की गलतियां गिनाने लगते हैं - हमेशा कुतर्क देते मिल जाएंगे कि कांग्रेस को तो कुछ कहने का अधिकार ही नहीं है वो तो पहले अपने गिरेबान में झांके आदि इत्यादि ....

और ताजा उदाहरण राज्यसभा में मोदी जी के भाषण का है .... मोदी जी पूरे समय विपक्षियों पर चुटीले तंज़ कसते कटाक्ष करते और सबका उपहास करते हुए अपने आपको चतुर सिद्ध करते ही दिखे .... पर बेचारे अकल के मारे शायद ये भी नहीं समझ पाए कि इस प्रकार के अहंकार और प्रतिक्रिया की सीमाएं भी तो होती हैं .... और परिणाम ये हुआ कि जब वे एकतरफा भाषण दे सदन से निकल गए तो उनके सभी तीरों से व्यथित सीताराम येचुरी ने वो कर दिया जो परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में "अनुकूल ससमय आवश्यक और सटीक" था - यानि उन्होंने भी मोदी को उनकी ही शैली में जवाब देते हुए अपने एक संशोधन प्रस्ताव पर मतदान करवा एवं पास करवा सरकार को चारों खाने चित्त कर दिया ....
और प्रस्ताव भी क्या - एक ऐसा चुभता सालता सच जो मोदी सरकार की मुख्य विफलता रेखांकित करता है - "उच्च स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को दूर करने और कालाधन वापस लाने में सरकार असफल रही है" !!!!

उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में मैं भी मोदी जी के लिए एक चुभता तंज़ और चुटीला कटाक्ष प्रस्तुत करना चाहूँगा कि ....

मोदी जी !! डरे को डराने में - हारे को हराने में - मरे को मारने में - कोई पुरुषार्थ नहीं है ....
पुरुषार्थ तो - अराजक को डराने में - बलवान को हराने में - और अहंकार को मारने में है ....
जैसा कि अरविन्द केजरीवाल ने कर दिखाया था ....
"अनुकूल ससमय आवश्यक और सटीक" .... है ना !!!!
!!!! धन्यवाद !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

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