Friday 13 March 2015

//// लखवी और मसरत में तो अंतर है भाई ....////


क्यों भाई - लखवी को कैसे छोड़ दिया ? .... ऐसी ज़ुर्रत ? .... होश में रहना - अकल ठिकाने लगा देंगे .... याद है ट्रिगर पर ऊँगली चलती है .... ठाँय . ठाँय . ठाँय !!!!

पर भाई ये मसरत का क्या मामला है - उसे क्यों छोड़ दिया ? .... चुप ! फालतू की बात नहीं - फालतू की तुलना मत करना - वो तो हमारा आतंरिक मामला है - हमारी मजबूरी वाली गलती है !!!!

समझे ? चलो अब चुप रहना - बहुत हो गई .... बोलो ! वन्दे मातरम् !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

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