Monday 9 February 2015

//// बिहार में गंदी राजनीति क्यों संभव हो पा रही है ??....////


बिहार में राजनीतिक उठापटक .... मांझी .... नितीश .... भाजपा .... के इर्दगिर्द चल रही है ....

चालाकी भरे अनैतिक पर राजनीतिक कौशल्य से भरपूर ना-ना प्रकार के शब्द बाण गरीब जनता के नामे बिना जनता के हित की परवाह किये चलाए जा रहे हैं .... यानि इस समय बिहार में ऐसा बेवकूफ बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि जो कोई भी जो कुछ भी बोल रहा है या कर रहा है तो वो बिहार के गरीब शोषित दलित आदि आदि आदि के लिए ही किये जा रहा है - अनवरत किये ही जा रहा है - और इस वक्त कोई भी नेता अपने स्वार्थ के बारे में तो कुछ भी सोच ही नहीं रहा है .... पर मित्रों सजग रहना होगा क्योंकि ये शातिर और गिरे हुए नेता न सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में पर दूसरे के अहित आदि के बारे में ही सोच रहे हैं .... और शायद सबकुछ गंदा ही सोच रहे हैं - शोचनीय सोच रहे है ....

और मित्रों इसलिए सोच मैं भी रहा हूँ - मैं सोच रहा हूँ कि क्या जिस प्रकार करोड़ों रूपए का खर्च कर और गजब की मशक्कत कर चुनाव कराए जाते हैं उसके बाद सफल परिणाम या फल पाने के लिए क्या वर्तमान व्यवस्था तर्कसंगत या उपयुक्त है ??? मसलन एक प्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्या किसी भी एक व्यक्ति को किसी भी पार्टी के द्वारा पूर्व से ही मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर देना उपयुक्त है ? क्या चुनाव बाद किसी भी व्यक्ति को किसी भी एक शीर्ष नेता की सनक या मर्ज़ी पर मुख्यमंत्री बना देना क्या उपयुक्त है ?

और जब मैं अभी हाल के कुछ उदहारण देखता हूँ तो मुझे उत्तर मिलता है ....
मेरे हिसाब से .... किरण बेदी का दिल्ली मुख्यमंत्री प्रत्याशी का मनोनयन गलत था ....
और मोदी कृपा से फड़नवीस या खट्टर का महाराष्ट्र या हरियाणा का मुख्यमंत्री बनना भी गलत था ....
और इसी प्रकार नितीश की कृपा से मांझी को मुख्यमंत्री बनाना भी गलत था ....
और यहाँ तक कि केजरीवाल को पूर्व से ही मुख्यमंत्री घोषित कर देना भी गलत था ....

मित्रों मेरा स्पष्ट सोच है कि जब कोई भी मुख्यमंत्री एक पार्टी विशेष का या किसी भी वर्ग विशेष का होना अपेक्षित नहीं होता - और वो तो पूरे प्रदेश का मुख्यमंत्री माना या चाहा जाता है ....तो .... तो सरल सी बात है प्रत्येक बार मुख्यमंत्री का चयन सर्वथा और अनिवार्यतः सभी विधायकों द्वारा सीक्रेट बैलट के जरिये चुनाव आयोग की देख रेख में मात्र कुछ घंटो की एक प्रक्रिया पूर्ण कर क्यों नहीं कर लिया जाता ??

मित्रों मैं दावे से कह सकता हूँ कि इस एकमात्र उपाय से इसमें की शर्मनाक ड्रामेबाज़ी और घटिया राजनीति और घृणित उठापटक बंद की जा सकती है ....
कल्पना करें की यदि ऐसा होता तो क्या पहले नितीश ही मुख्यमंत्री बनते और क्या उसके बाद मांझी ही बनते और क्या भाजपा अपनी राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का खेल कर पाती और क्या दलित पिछड़ा आदि के नाम का खालीपीली कार्ड खेला जा सकता था ???? नहीं ना !!!!
आइये हम चुनाव सुधारों के बारे में और सोचें - कुछ वृहद तर्कसंगत उपयुक्त और अच्छा सोचें .... ताकि हम घटिया नेताओं की राजनीती में एंट्री या कम से कम वर्चस्व को बंद कर सकें !!!!
और हाँ ये भी सोचें कि ये महामहिम राज्यपाल क्या महामहिम कहलाने लायक हैं ? और क्या बिहार के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग किसी संवैधानिक पद के लायक हैं ? और क्या राज्यपालों की नियुक्ति भी किसी की मर्ज़ी और स्वार्थ और सनक पर संभव होनी चाहिए ???? .... धन्यवाद !!!! जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

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