Friday 11 December 2015

// ९+९ महीनों में खुद कुछ ना कर सके - फिर केजरीवाल से टुच्चे प्रश्न क्यों ....//


जब से केजरीवाल सरकार ने पर्यावरण सुधार हेतु सम विषम क्रमांक की गाड़ियों की योजना के बारे में बात करी है तब से ही बड़े-बड़े ऊँचे-ऊँचे टुच्चे-टुच्चे प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं ....

मसलन .... पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पहले चुस्त दुरुस्त क्यों नहीं किया ??
मेट्रो को और विस्तारित क्यों नहीं किया ??
पर्यावरण को सुधारने हेतु उपकरण क्यों नहीं लगाए ??
यातायात सुगमता हेतु सड़कों का चौड़ीकरण और नई सड़कों का निर्माण क्यों नहीं किया ??
पर्यावरण इतना दूषित होने ही क्यों दिया ??
सबसे राय क्यों नहीं ली ??

मेरी प्रतिक्रिया ....

जो हनीमून पीरियड में कुछ नहीं कर पाए - फिर १ महीने में भी कुछ नहीं कर पाए - फिर ३ महीने में भी कुछ नहीं - फिर १०० दिन में भी कुछ नहीं - और अंततः जब ९ महीने में 'विकास पुत्तर' का अता-पता नहीं दे सके - और तो और जब और अगले ९ महीने में भी ना 'विकास' और ना उसकी संभावित बहन 'प्रगति' का ही कुछ अता-पता लग पाया - तो अब वे झेंप रहे हैं - कह रहे हैं हम नपुंसक नहीं - बल्कि हम तो 'लम्बी प्लानिंग' कर रहे हैं .... और अब वे 'विकास' २०२२ में और 'प्रगति' २०२४ तक की बात कर रहे हैं ....

पर यही लोग जब केजरीवाल की बात आ जाए तो स्याप्पा डालने लगते हैं - चिल्लाते हैं .... ९ महीने पूरे हो गए - बस इतना ही किया - बस इतना ही कर रहे हैं - बात तो ज्यादा की करते थे ....

इसलिए मित्रो आज मैं भी एक जुमला छोड़ने के मूड में आ गया हूँ - तो गौर फरमाएं ....

प्रकृति से नियत हमारे ही समाज के अभिन्न अंग बेचारे पर सम्मानित हिंजड़ों के घर बच्चे पैदा नहीं होते .... वो तो घर-घर घूम इधर उधर से मैन्युफैक्चर्ड बटोर-बटार ही कुनबा चलाया करते हैं !!!!

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