Friday 4 December 2015

// "मुर्दे गड़े थे - उखड़ने दो" --- "मुद्दे ज्वलंत हैं - जलने दो" ....//


२०१५ बीतने को है और २०१६ आने को है ....
परन्तु लगता है गड़े मुर्दों को उखाड़ने का सीज़न चल रहा है - और फैशन भी - और स्टाइल भी - और शायद नीति भी ....

और इसलिए जो बेलगाम थोकबंद बातें हुईं उनमें मुख्य रहीं - पिछले ६०-७० साल का स्यापा - संविधान - अम्बेडकर - नेहरू - पटेल - संघ - राम - हिन्दू - मुसलमान - हिंदुत्व - बाबर - औरंगज़ेब - क्रिकेट - आरक्षण समीक्षा - मंदिर निर्माण - १९४७-५६-६२.. - १९७५-७७ की इमरजेंसी - १९८४ के दंगे - १९९२ का विंध्वंस - २००२ का कत्लेआम - - २०१३ में 'जातिपूछ' प्रश्न - २०१४-१५ की असहिष्णुता - और ढेर सारे बयानबाज़ों के ढेर सारे बयान और अपशब्द - और ढेर सारे झकोरों के कुकृत्य .... और साथ ही - इन्द्राणी और राधेमाँ - आदि इत्यादि !!!! 

और मैं स्पष्ट देख और महसूस कर रहा हूँ कि देश के जिम्मेदार जवाबदार झकोरे किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर गंभीर नहीं है - और इसलिए कोई भी गरीबी - महँगाई - बेरोजगारी - शिक्षा - स्वास्थ्य - धार्मिक उन्माद - पर्यावरण - गड़बड़ाई सी अर्थव्यवस्था - भ्रष्टाचार - आदि के मूल मुद्दों पर किसी भी प्रकार की सार्थक बात तक नहीं कर रहा ....

इसलिए मुझे स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार ने और कोई नीति बनाई हो या नहीं - नीति आयोग ने कुछ कार्य किया हो या नहीं - पर ये सरकार एक सुस्पष्ट नीति पर क्रियान्वयन कर आगे बढ़ना चाह रही है .... 

और वो नीति है .. >> .. "मुर्दे गड़े थे - उखड़ने दो" --- "मुद्दे ज्वलंत हैं - जलने दो" ....

और इसलिए मैं इस सरकार को आगाह करना चाहूँगा कि ....
'मुर्दों' की राजनीति अच्छी नहीं - 'मुद्दों' पर लौट आओ ....
अन्यथा जीतेजी भी मुर्दे ही तो कहलाओगे .... 'मरणासन्न मुर्दे' .... समझे !!!!

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