मैं कई बार सोचता रहा था कि लगभग एक जैसे अर्थों के भिन्न भिन्न शब्द क्यों हुए .... और एक ही शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ क्यों .... और इसी कारण मैं कई लोगों को भिन्न भिन्न करते भी देखता रहा हूँ ....
अब जैसे .... "भक्त" शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं - या निकाले जाते हैं .... और ये बात तो काफी पहले ही समझ भी आ गई थी ....
पर एक जैसे अर्थों के भिन्न भिन्न शब्द क्यों हुए यह बात आज और स्पष्ट हुई ....
मसलन जब गंजे के लिए सटीक शुद्ध "गंजा" शब्द था तो फिर ये "टकला" शब्द क्यों निकला ?? ....
और मुझे आज स्पष्ट हुआ कि यदि "गंजा" ज्यादा ही चालाक बदमाश हो तो फिर उसके लिए स्वतः ही "टकला" शब्द सटीक हो जाता है .... और शायद ऐसे ही भाषा में नए-नए शब्दों का समावेश होता रहा है ....
समस्त गंजों और अर्धगंजों और आंशिक गंजों से माफ़ी के साथ - पर समस्त "टकलों" को धिक्कार के साथ समर्पित - जो अपनी चालाकी और बदमाशी से देश को चूना लगा रहे हैं .... आपका .... बूढ़ा बुढ़ऊ ....
पुनश्चः शायद खूँसट बुड्ढे के लिए बुढऊ शब्द ज्यादा उपयुक्त हो .... है ना !! .... हा !! हा !!
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