Thursday 3 December 2015

// 'शहरी' 'ग्रामीण' और समझदारी .... और बेहतर भविष्य का जश्न ....//


गुजरात में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए और कल नतीजे भी आ गए ....
शहरों में भाजपा की शानदार जीत हुई .... वहीँ ग्रामीण इलाकों में शर्मनाक हार ....

इसलिए प्रश्न खड़े हो रहे हैं कि समझदार कौन - 'शहरी' या 'ग्रामीण' ??

मेरी विवेचना ....

निश्चित ही शहरी ज्यादा पढ़े लिखे होते हैं - पर ज्यादा समझदार भी हों ऐसा मानना मूर्खता होगी - और इसलिए यदि उनको सत्तापक्षीय भाजपा की नीतियों से फायदा पहुंचा होगा तो उन्होंने भाजपा को वोट दिया होगा जिसके कारण भाजपा शहरों में जीत गई ....

निश्चित ही ग्रामीण कम पढ़े लिखे होते हैं - पर शायद समझदारी में मेहनत में जीवटता में ईमानदारी में सहिष्णुता में सहनशीलता में वे शहरियों से ज्यादा श्रेष्ठ  होते हैं - और इसलिए यदि उनको सत्तापक्षीय भाजपा की नीतियों से फायदा नहीं पहुंचा होगा तो उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया होगा जिसके कारण भाजपा ग्रामीण क्षेत्रो  में हार गई ....

तो क्या शहरी बनाम ग्रामीणों की इस विवेचना अनुसार सब कुछ समतुल्य हो गया - बराबर हो गया ??

नहीं बिलकुल नहीं !! ..मेरे मतानुसार तो ग्रामीणों का पल्ला बहुत भारी पड़ गया - और इसका कारण है - ७०% से ज्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रो में रहती है और इसलिए निर्विवाद रूप से कहा जाता रहा है कि भारत की आत्मा ग्राम ही हैं ना की शहर ....

पर क्या भाजपाई शहरी जीत का जश्न भी ना मनाएं ?? .... नहीं बिलकुल नहीं - भाजपा हो या कोई और - ख़ुशी के हर पल को जश्न के साथ मना ही लेना चाहिए - क्योंकि क्या पता ऐसा शहरी जश्न मनाने का मौका भविष्य में मिले या ना मिले ?? .... आंकड़े तो यही कहते हैं कि भाजपा कुल ३०-४० % वोट हासिल कर सत्ता में आई थी और ६०-७०% ग्रामीण आबादी अब अपनी समझदारी का 'प्रमाण' दे चुकी है .... भाजपा को 'प्रणाम' कर चुकी है !!!!

इसलिए आइये - आनंदी बेन और भक्तों द्वारा शहरी जश्न मनाने में आनंदित हुआ जाए - एक बेहतर भारत के लिए - बेहतर भविष्य के लिए !!
हा !! हा !!! हा !!!! .... हा !! हा !!! हा !!!!

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