Sunday 2 August 2015

//// धार्मिक उल्लुओं के लिए मेरी समझदारी की सौगात - आज बिलकुल फ्री ..////


आज एक खबर सामने आई है - धर्म और धार्मिक उल्लुओं और धार्मिक ठगों से संबंधित - और ये खबर दिल दहला देने वाली कही जा रही है - मेरे कुछ जानने वाले धर्म-भीरु भी इसे दिल दहला देने वाला वाकया बता रहे हैं ....

पर मेरा दिल इस खबर से तनिक भी दहला नहीं है क्योंकि शायद मेरे पास दिल के अलावा दिमाग भी है और जो वर्चस्व में भी है .... और इसलिए ये खबर हमेशा की तरह मेरे दिमाग को झकझोड़ रही है .... आज फिर धर्म के उल्लुओं का उपहास करने के लिए प्रेरित कर रही है .... और धार्मिक ठगों को धिक्कारने हेतु हिम्मत दे रही है .... और ये बताने की कि ऐसा धर्म क्या बला होता है जो धार्मिक दिखता है और धार्मिक होने की चेष्टा करता है पर काम धोखाधड़ी के करता कराता है ....

अब पहले खबर पर आ जाता हूँ .... ५ महीने का बच्चा - पढ़े लिखे माँ बाप - अपने बच्चे को खंडवा के एक आश्रम में बाबा रामेश्वर दयाल उर्फ़ छोटे सरकार को गोद दे देते हैं - उसको सुपुर्द कर देते हैं .... पर दादा दादी का दिल दहला होगा और निश्चित ही दिमाग भी चला होगा - सो उन्होंने विरोध किया और मामले को कोर्ट तक ले गए - और कोर्ट ने भी अपना दिमाग लगाया - छुट्टी के दिन कोर्ट खुलवा मामले की सुनवाई करी - और निर्णय दे दिया - बच्चे को बाबा को नहीं सौंपा जाए !!!!

और साथ ही जरा बाबा का संक्षिप्त वर्णन भी कर दूँ - बताया जा रहा है बाबा रामेश्वर दयाल उर्फ छोटे सरकार करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं - इनका रहन-सहन शाही है - हमेशा निजी हेलिकॉप्टर से ही सफर करते हैं - नई दिल्ली के आश्रम में रहते हैं - लेकिन साल में दो बार खंडवा के दादाजी धूनीवाले आश्रम में आते हैं .... यकीनन कुछ ऐसे ही दावों के साथ ही पधारते होंगे कि आने का मकसद रहता है - दर्शन देना - सत्संग करना - भजन करना कराना - प्रवचन करना - धर्म और ज्ञान की गंगा बहाना - शिष्यों का दुःख वरण करना - जीवों का दुःख हरण करना - भंडारा कराना - आश्रम की देखरेख करना - आश्रम का विस्तार करना - आश्रम का स्कूल कॉलेज अस्पताल चलाना - संस्था की धार्मिक गतिविधियों का जायजा लेना - आश्रम हित में व्यावसायिक गतिविधियों का जायज़ा लेना - ट्रस्ट बनाना - समितियां बनाना - और नए अनुयायियों को अपने साथ जोड़ना - आदि इत्यादि अनादि ..... अनादि इसलिए कि अंततः अपने अनुयाइयों को मोक्ष दिलवाना .... और मोक्ष डंके की चोट दिलवाना - बशर्ते अनुयायी पूरे विश्वास और आस्था से (बिना दिमाग लगाए) बाबा को समर्पित रहे - और बाबा जी कि जय करता रहे - जयजयकार करता ही रहे !!!!

मैं दावे से कह सकता हूँ कि जिन व्यक्तियों का दिल दहला होगा और शायद जिनका दिमाग भी चला होगा उनमें से अधिकाँश व्यक्तियों का स्वयं कोई धर्म या मत होगा - और वो भी किसी धार्मिक स्थल पर जाते होंगे - उनकी भी किसी ना किसी स्वयंभू या सर्वमान्य 'शक्तिरूप' में कोई आस्था होगी - उनके भी कोई ना कोई बाबा संत साधू मुल्ला मौलवी पादरी होंगे - उनका भी किसी आश्रम मंदिर मस्जिद सत्संग भवन आदि बनाने में योगदान होगा - उनका भी अपनी आस्था अनुसार और औकात से बढ़कर सभी गतिविधियों में आर्थिक योगदान होता होगा - वो भी 'प्रशाद' ग्रहण कर कृतार्थ होते होंगे कराते होंगे बांटते होंगे .... यानि काफी कुछ रामेश्वर दयाल जैसों की ताम-झाम से काफी कुछ मिलता जुलता ....

पर मजाल है कि कोई अपने वाले का दोष देखने का प्रयास करे - और कुछ पूछे कुछ कहे कुछ देखे कुछ सुने कुछ चर्चा करे - कुछ बहस करे - या अपने से ही अपने ही विश्वास पर कुछ प्रश्न खड़े करे और उसे अपने ही बनाये किसी तराजू पर तोलने का प्रयास करे .... कदापि नहीं ....

कदापि इसलिए नहीं कि - शायद जो कम्बल ओढ़ एक बार सोने का नाटक रच चुका है - वो जागते हुए भी सोया ही रहता है - और फिर सोता ही रह जाता है .... और यदि ये कंबल धर्म का हो तो सर्दी गर्मी बरसात में भी उढ़ा ही रहता है - और मृत्यु पर्यन्त उढ़ा ही रह जाता है - और केवल शरीर के साथ ही आपका पिंड छोड़ता है !!!!

इसलिए आज जरूरत है कि आप कुछ ओढ़े हुए कम्बलों को उतार फेंके - और जाग जाएं ....
और अपने वाले बाबा रामेश्वर दयाल को भी जाने पहचाने - और अपनी आने वाली पीढ़ी को नारकीय जीवन व्यतीत करने का शाप देने से बचें .... उल्लू बनने से बचें !!!!

याद रहे न्यायालय का काम किसी प्रकरण में न्याय करना भर है - जो उसने बखूबी कर दिया है .... पर न्यायालय कोई दिमाग में समझदारी भरने का पंप नहीं - समाज में इधर-उधर उड़ रही समझदारी को तो आपको स्वयं अपने दिमाग में भरने का काम करना होगा - नहीं तो खाली रहिएगा !!!! धन्यवाद !!!!

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