Sunday 2 August 2015

//// भाजपा की 'याकूब' विषयक दलीलों पर 'पचेको' ने पलीता चिपका मारा ..////


घटना थी २००६ की - गोवा के पूर्व मंत्री और विधायक फ्रांसिस्को मिकी पचेको ने एक सरकारी अफसर को थप्पड़ जड़ दिया था - पचेको को छह माह कैद की सजा हुई - मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया - और सुप्रीम कोर्ट से भी फैसले पर मुहर लग जाने के बाद 1 जून से श्रीमान पचेको जेल की हवा खा रहे हैं ....

सब कुछ न्यायसंगत ठीक चल रहा था पर ना मालूम क्यों गोवा सरकार को पेट में दर्द उठ गया और सरकार ने राज्यपाल को पचेको की सज़ा माफ़ करने का प्रस्ताव प्रेषित कर दिया ....

और पता चला है कि पचेको ने अपनी सजा माफी की अपील में अपनी और बूढ़ी माँ की बीमारी और देखरेख की जरूरत को आधार बनाया है - यानि "मानवीय आधार" .... वही सुषमा जी वाला जैसा ही "मानवीय आधार" ....
और मैं बताता चलूँ कि गोवा सरकार के प्रस्ताव का बचाव करते हुए गोवा के उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा ने थप्पड़ मारने को मामूली अपराध करार दिया - और ये भी कह दिया कि ऐसे मामले में सुधार का प्रयास किया जाना चाहिए ना कि सजा का प्रावधान होना चाहिए ....

और ये सबकुछ हुआ ठीक तब - जिस दौरान याकूब कि फांसी पर देश में गर्मागर्म बहस चरम पर थी और जिस बहस में भाजपा के प्रवक्ता टीवी चैनलों पर गर्राते चिल्लाते एक ही बात बार-बार बोल रहे थे कि - बस जब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ गया तो कोई अन्य बात करने की गुंजाइश ही नहीं है - इसलिए याकूब की फांसी का कोई विरोध ना करे - उससे कोई हमदर्दी का इज़हार नहीं करे - भाजपा और सरकार से कोई प्रश्न ना करे - और आगे पीछे कि कोई बात ना हो .... क्योंकि याकूब आतंकवादी था - उसने गुनाह किया था - और सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुनाई थी - इसलिए अब सब खामोश !!!!

तो मित्रो अब मैं आगे क्या कहूँ - सब कुछ तो कह दिया - बस थोड़ा और जोड़ देता हूँ ....

भाजपा के लिए 'याकूब' और 'पचेको' दो अलग अलग विषय हैं - और वो इसलिए क्योंकि बेशर्मों की कार्यशैली और बात में तर्क हो ऐसा होना कत्तई आवश्यक नहीं हुआ करता .... बेशर्मों की अपनी खुद की सीमित सिकुड़ी संकुचित मर्यादाएं ही होती हैं (यदि होती हों तो) जो जब तब सुविधा और मजबूरी अनुसार लांघी जाती रहती हैं - कभी बड़े आराम से - कभी बड़े यतन से - कभी चुप्पी साध कर - तो कभी चिल्लाते गर्राते हुए - तो कभी कपडे फाड़ते हुए ....

2 comments:

  1. शानदार लेख .इस बहस को बढ़ाया जाना चाहिए .कहीं राज्यपाल सचमुच सजा माफ न कर दें

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  2. माफीनामा कबूल हो चुका होगा। बाकी संविधान की शाॅल ओढ़ा कर छुपाना भर है।

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