Monday 19 January 2015

//// तैयार रहें - हम अपने को लुटता पिटता देखेंगे - वो भी प्रजातान्त्रिक तरीके से ////

आजकल राजनीति में एक नई नायाब विधा सामने आई है जो बहुत ही विचित्र हास्यास्पद होने के साथ बहुत ही घातक भी है ....
आजकल लगभग सभी नेताओं के इ-अभिलेख विद्यमान हैं जिसके कारण ओछे से ओछा और शाने से शाना नेता भी अब यह तो नहीं कह सकता कि मैंने ऐसा नहीं कहा था वैसा नहीं कहा था ....
तो यदि अब किसी बेशर्म को अपनी बात से पलटना हो तो ? यानि "U" टर्न लेना हो तो ? तो क्या किया जाए ?
मित्रों मैं बताता हूँ कि अब क्या किया जा सकता था और क्या किया गया है ....
// या बेशर्मी तेरा ही आसरा //
मसलन किरण बेदी जी के ऐसे गजब के इ-अभिलेख विद्यमान हैं जिसको झुठलाया नहीं जा सकता था - तो जनाब मैडम ने क्या कह दिया - मेरे विचार बदले गए - मेरा दिल बदल गया ....
मित्रों ये एक नए प्रकार की घातक राजनितिक बेशर्मी है ....
घातक क्यों है ?? ज़रा गौर फरमाइए >>>>
मुझे ये स्पष्ट हो चुका है कि मसलन कांग्रेस और भाजपा दोनों अंदर से मिले हुए रहे - उनके आका भी एक ही रहे - उनके नेता आपस में घुलते मिलते रहे - मिल जुल के भ्रष्टाचार भी करते रहे - एक ही परिवार में कुछ कांग्रेस में रहे कुछ भाजपा में .... पर फिर भी खुल के सामने नहीं आते थे अपवादों को छोड़ कर .... यानि एक शर्म का पर्दा या आवश्यक पर्दा तो था ही ....
पर इस बार १०० से ज्यादा वर्तमान भाजपा सांसद कांग्रेस से लाए गए या कांग्रेस से आए - और अब तो भाजपा ने ये नीति ही सार्वजनिक कर दी है कि जो भी अच्छा बुरा छोटा बड़ा लायक नालायक भाजपा में आना चाहे उसका स्वागत है ....
इसका सबसे ताज़ा उदाहरण किरण बेदी का भाजपा में आना है - और भाजपा का किरण बेदी को लेना है .... बावजूद इसके कि - किरण बेदी भाजपा और मोदी के लिए और भाजपाई किरण के लिए इ-अभिलेख में वो दर्ज करा चुके हैं जो घोर विरोध ही नहीं अपितु बिलकुल उलट विचारधारा की मिसाल माने जा सकते हैं ....
और मित्रों - ये सब घातक इसलिए है कि अब ऐसा होना इतना आसान बना दिया गया है जितना पहले कभी नहीं था - यानि बस कहिये कि मेरा दिल बदल गया और काम बन गया ....
तो अब आगे से ये सारे चोर लुटेरे डकैत खुल्ले बेपर्दा हुए - और ये आपस में चुनाव लड़ते तो दिखेंगे पर चुनाव पहले कौन किसके साथ था चुनाव बाद कौन किसके साथ होगा आप कुछ भी अनुमान नहीं लगा सकेंगे .... क्या भरोसा कि जब भाजपा एनसीपी मिल बैठे और भाजपा पीडीपी मिल बैठे तो कल भाजपा और कांग्रेस क्यों नहीं मिलेंगे ????
और क्यूँ ऐसा नहीं हो सकेगा कि मसलन जीतन मांझी बिहार के भाजपाई मुख्यमंत्री हो जाएँ या फिर ओवैसी आंध्र के भाजपाई मुख्यमंत्री या फिर शिवराजसिंह चौहान अगले कोंग्रेसी प्रधानमंत्री बन जाएं ????
तो यानि - ना तो होगा कोई राजनीतिक पक्ष और ना ही होगा कोई विपक्ष ....
होगा तो एक सत्ता पक्ष और विपक्ष में होगी जनता .... जी हाँ आप और हम ....
शायद तब हम रो रहे होंगे प्रजातंत्र को - जो तानाशाही से भी घातक रूप ले चुका होगा ....
और शायद हम मजबूरी में बस अपने को लुटता पिटता देखेंगे - वो भी प्रजातान्त्रिक तरीके से !!!!

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