Monday 26 January 2015

//// शायद इतने नज़दीक से दी गई आवाज़ भी उन्होंने सुनी नहीं होगी .... ////

मित्रों सर्वप्रथम निवेदन !! कृपया एक सारगर्भित वक्तव्य के अंशों का अवलोकन करें .....
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तीन दशकों के बाद जनता ने स्थाई सरकार के लिए, एक अकेले दल को बहुमत देते हुए, सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है और इस प्रक्रिया में देश के शासन को गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों से मुक्त किया है। इन चुनावों के परिणामों ने चुनी हुई सरकार को, नीतियों के निर्माण तथा इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाकर जनता के प्रति अपनी वचनबद्धता को पूरा करने का जनादेश दिया है। मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है; अब यह चुने हुए लोगों का दायित्व है कि वह इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।
बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है। इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है। यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है।
बलात्कार, हत्या, सड़कों पर छेड़छाड़, अपहरण तथा दहेज हत्याओं जैसे अत्याचारों ने महिलाओं के मन में अपने घरों में भी भय पैदा कर दिया है। हर एक भारतीय को किसी भी प्रकार की हिंसा से महिलाओं की हिफाजत करने की शपथ लेनी चाहिए। केवल ऐसा ही देश वैश्विक शक्ति बन सकता है जो अपनी महिलाओं का सम्मान करे तथा उन्हें सशक्त बनाए।
भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है। यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है तथा विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है। वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है।
गांधी जी ने कहा था कि धर्म एकता की ताकत है; हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते।
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मित्रों उपरोक्त वक्तव्य कल शाम राष्ट्रपति भवन से महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को दिए गए संदेश के अंश मात्र हैं ....
और ये वक्तव्य जिस व्यक्ति के लिए सबसे प्रासंगिक और आवश्यक थे वो व्यक्ति भी शायद ठीक उसी वक्त राष्ट्रपति भवन में ही मौजूद थे - पर शायद इतने नज़दीक से दी गई आवाज़ भी उन्होंने सुनी नहीं होगी - शायद इसलिए कि वो उसी वक्त भव्य भोज आयोजन में व्यस्त रहे होंगे ....
और वैसे भी उन्हें तो बोलने में महारत हासिल है - वो सुनते ही कहाँ हैं ....यदि सुनते ही होते तो शायद राष्ट्रपति जी को उपरोक्त वक्तव्य देने की आवश्यकता ही कहाँ पड़ती !!!!
और मित्रों अंत में एक और बात रखना चाहूंगा - उपरोक्त आंशिक वक्तव्य मैंने गूगल गुरु की मदद से प्राप्त किए हैं - जिसके भी अति सूक्ष्म अंश कुछ अखबारों के अंदर के पन्नों पर आज छपे मिले ....
और हाँ कुछ टीवी चैनल्स पर हाईलाइट के रूप में कल शाम भव्य भोज की विस्तृत कवरेज के पहले कुछ ऐसे अंदाज़ में बताये गए थे जैसे .... अभी-अभी समाचार मिला है कि नसरुल्लागंज में एक बम फटा है - या केजरीवाल की सभा में अंडे फेंके गए - या मेरठ में बारात ले जा रहा ट्रेक्टर रपटा छोड़ नाले में गिरा २५ मरे ५० घायल ....
और शायद आज मैं भी अपने आप को घायल और व्यथित ही महसूस कर रहा हूँ ....
फेंके हुए पत्थरों से नहीं बल्कि .... "अब तक बोली गयी उस वाणी की हिंसा से जो चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है" ..... और उस वाणी को अनसुना कर देने के कारण भी जिस वाणी को आम और खास दोनों को सुनना अति आवश्यक था !!!!
महामहिम को सादर समर्पित - गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओ सहित .... !!!! जय हिन्द !!!!

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