Sunday 25 January 2015

//// राष्ट्रीय पर्व की मेजबानी यदि किसी घटिया व्यक्ति के हाथ में हो तो ?? ////

अटल जी की भाजपा मुझे अच्छी लगती थी - लेकिन मोदी जी की भाजपा बिलकुल नहीं ....
इसका प्रमुख कारण रहा .... मोदी जी की भाजपा का संकीर्ण "हिंदुत्व" और सांप्रदायिक स्वभाव ....
और जैसे जैसे समय बीता .... मोदी की भाजपा और सरकार को मुद्दों से भटकते वादों से भागते ही देखा .... और दिन-ब-दिन मेरा भरोसा इस सरकार से और ज्यादा उठता चला गया ....
और इसके बाद जब तब - - "पाकिस्तान भेज देंगे" - "ये पाकिस्तानी एजेंट है" - "भारत के सभी नागरिक हिन्दू हैं" - "देश में रहना है हिन्दू बनना होगा"  - "मादरे वतन की कसम ...." आदि टाइप के ओछे डायलाग सुनता था तो मुझे लगता था कि इनकी राष्ट्र के प्रति प्यार और निष्ठा भी कुछ विचित्र प्रकार की है .... जिसमे शायद स्वार्थ और राजनीति और पागलपन ही अधिक है !!!!

पर अब जब अरविन्द केजरीवाल  को गणतंत्र दिवस समारोह में निमंत्रण ना देने की बात सुनी और उसके बाद भाजपाई प्रवक्ताओं की दलीलें और बहस - तो मुझे लगा कि - मोदी की भाजपा वाला "राष्ट्र प्रेम" भी "प्रेम" और "राष्ट्रहित" से कोसों दूर है ....
६७ साल की आज़ादी के बाद शायद ये पहला प्रसंग होगा कि राष्ट्रीय पर्व के मौके पर किसी नेता को बुलाने ना बुलाने का विषय सर्वजन के समक्ष आया हो .... और दलील ये दी गई कि अरविन्द केजरीवाल ने साल भर पहले २६ जनवरी के पूर्व स्वयं मुख्यमंत्री होते हुए धरना देने के दौरान २६ जनवरी के समारोह के परिप्रेक्ष्य में कुछ टिप्पणी कर दी थी .... जिसका भाजपाई भाषा में ये आशय निकलता है कि - ऐसे टुच्चों को राष्ट्रीय पर्व पर क्यों बुलाया जाए ????
मैं गंभीरता से सोच रहा था कि राष्ट्रीय पर्व के सरकारी समारोह में एक बार मान भी लिया जाए कि टुच्चों को नहीं बुलाना चाहिए .... पर क्या इसका निर्णय करने का अधिकार कि कौन टुच्चा है कौन नहीं क्या किसी टुच्चे के पास होना चाहिए ????
और इसी कड़ी में मैं निहायत पेचीदगी से भरी इसके ठीक उलट एक और बात सोच रहा था कि यदि कोई घटिया व्यक्ति ही कार्यालय प्रमुख या शहर का मेयर या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि बन जाता है और वो स्वयं राष्ट्रीय पर्व के सरकारी समारोह की अध्यक्षता या मेजबानी करता हो तो क्या एक आम भारतीय द्वारा ऐसे समारोह का बहिष्कार करना उचित होगा ?? नहीं ना !!!!
और तो और क्या जेलों में भी झण्डावंदन होता है कि नहीं ?? तो फिर क्या इसे भी बंद करना उचित होगा ?? नहीं ना !!!!
तो क्या हमें कम से कम राष्ट्रिय पर्व केवल "भारतीय" होने के ही नाते मिलजुल कर नहीं मनाना चाहिए - फिर हम में से चाहे कोई अच्छा हो या बुरा ?? क्या राष्ट्र के मुख्य समारोह के निमंत्रण देने में किसी भी संकीर्णता या राजनीति का परिचय देना शोभा देता है ????
मित्रों सोचियेगा जरूर !!!! धन्यवाद !!!! जय हिन्द !!!!

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