Wednesday 7 January 2015

//// सोचना ही होगा कि इस डरावनी अंतहीन कहानी का अंत कैसे हो .... ////

पेरिस में फिर एक आतंकवादी हमला ....
कुछ दिन पहले ही पेशावर में आतंकवादी हमला ....
निश्चित ही ये इस्लामिक कट्टरता का प्रतीक प्रतीत होते हैं और इसे इस्लामिक आतंकवाद की ही संज्ञा दी जा सकती है ....
पर बहुत सोच विचार के लिखना चाहता हूँ की क्या ज्यादा उचित नहीं होगा कि हम इसे धार्मिक कट्टरता मानते हुए इसे धार्मिक आतंकवाद की संज्ञा देवें .... क्योंकि जैसा कि सभी सभ्य सहिष्णु और समझदार यही तो बोलते हैं कि कट्टरवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता और ना ही आतंकवाद का कोई धर्म होता है ....
लेकिन इसके साथ ही बहुत सोच विचार के मैं ये भी लिखना चाहूंगा की आज हिन्दुओं या अन्य धर्मों के अनुयायियों से कहीं ज्यादा जवाबदारी सभी मुसलमान भाइयों और बहनों की बनती है कि वो सभी इस घटना की पुरज़ोर भर्त्सना और विरोध करें ....
और हम सभी ये सोचें कि इस डरावनी अंतहीन कहानी का अंत कैसे हो ??
क्या हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि धर्म जिसकी स्थापना अच्छे उद्देश्यों के लिए ही की गयी होगी और जिसके कल तक अच्छे परिणाम मिलते भी रहे होंगे शायद अब उसी धर्म का दुरपयोग हो रहा है और वही धर्म अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है और इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं ????
इसलिए मेरा मानना है कि सभी बातों पर समग्र समाज को पुनरावलोकन करना ही होगा - और शायद हर प्रकार की कट्टरता का विरोध भी !!!!

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