Sunday 30 July 2017

// उसी मन की - 'मन की बात' .. और मेरी प्रतिक्रिया .. ..//


अभी-अभी प्रधानसेवक के उसी मन की 'मन की बात' सुनी - जो अब भाती नहीं है .. ..

वो बोले .. वर्षा प्रकृति बाढ़ मौसम चक्र विनाश .. 'मैं' और 'मेरे' सब लोग जी जान से लगे पड़े हैं आपदा प्रबंधन में .. पर अप्राकृतिक कार्यों से हो रहे या किए जा रहे विनाश के बारे में नहीं बोले ..

GST के बारे में - अपनी प्रशंसा की - GST का गुणगान कर दिया - अपना संतोष व्यक्त कर दिया .. और खुद की तारीफ करने वालों की तारीफ भी कर दी .. .. पर रोने वालों या परेशान होने वालों की क्या परवाह ?? .. .. और GST को सफल भी घोषित कर दिया .. ..

फिर अगस्त क्रांति - भारत छोडो आंदोलन की ७५ वीं जयंती के बारे में कुछ इतिहास की उज्जवल बातों के भरोसे वर्तमान की बकवास को बिसारते हुए आगे बढ़ लिए .. और पहुंच गए १८५७ तक .. लफ़्फ़ाज़ी का एक और अच्छा उदाहरण जिससे लोग प्रेरणा लें - और वो खुद क्या करें ?? .. चुप !! .. अब छोडो भी यार !! .. ..

और फिर आ गए १९४७ से आज तक के ७० साल पर घिसेपिटे डायलॉग .. .. और पहुंच गए २०२२ तक के सब्जबागों पर .. और संकल्प से सिद्धि तक भारत छोडो वाले नारे गढ़े .. और इतिश्री कर ली .. ..

फिर लाल किले से क्या कहना है - सवा सौ करोड़ से सुझाव आमंत्रित कर लिए .. और पहली बार एक सही बात कबूली कि वो बहुत लम्बा भाषण देते हैं - और इसलिए बोले इस बार छोटे भाषण की कोशिश करूंगा - पर गारंटी नहीं देता .. हा !! हा !! हा !! .. .. 

फिर उत्सव त्यौहार के बारे में कुछ गपशप कर ली .. और त्यौहारों को गरीब के जीवनोपार्जन का निमित्त या अवसर बताया .. ऐसा लगा कि गरीब का इसमें भला होता है इसका चिरकुटई संज्ञान भी इन्हें है .. ..

और फिर पर्यावरण .. इकोफ्रैंडली गणेश .. गणेशोत्सव के १२५ वर्ष को १२५ करोड़ भारतियों की संख्या से जोड़ा .. और लोगों से कुछ आह्वाहन कर दिए .. ..

और अंत में .. बेटियों के क्रिकेट की सराहना करी .. और फिर अपनी महानता और सीमित ज्ञानता को बघारते हुए इधर उधर की बातें करीं - जो ठीक ठाक थीं .. ..

इतिश्री मोदी के 'मन की बात' और मेरी प्रतिक्रिया !!

मेरे दिमाग की बातें - दिल से .. ब्रह्म प्रकाश दुआ

No comments:

Post a Comment