Thursday 13 November 2014

//// राजनेताओं की तरह हम सामान्य जन अपने स्वार्थ की बातें कब समझेंगे ? ////

करोड़ों रुपये और असीम संसाधन और समय खपाया जाता है लाखों वोट के द्वारा सांसदों या विधायकों को चुनने मात्र के लिए !!!!
तो फिर आपने कभी ये सोचा कि चुने हुए सांसद या विधायक सदन के नेता का चुनाव भी मात्र कुछ सौ वोट के द्वारा क्यों नहीं कर सकते ?? या क्यों नहीं करना चाहिए ??
भाई सीधी सरल सी बात है - सभी चुने हुए प्रतिनिधियों को एक हॉल में बिठा दो सबके हाथ में एक-एक वोट दे दो एक पद्धति का निर्धारण कर 1-2 घंटे में वोटिंग के ज़रिये नेता चयनित करवा दो बस .... फिर महाराष्ट्र में जैसा कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हुआ और अन्यत्र भी अनेकों बार होता आया है नहीं हो सकेगा - नाटक नौटंकी बंद - इसमें कौनसी राकेट साइंस लगती है जो क्लिष्ट प्रतीत हो ????
पर साहब ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि दलील दी जायेगी कि संविधान में ऐसा प्रावधान नहीं है !!!!
तो संविधान में प्रावधान कर क्यों नहीं देते ?? क्या आदरणीय बाबा साहेब कोई प्रतिबन्ध लगा गए थे ? क्या संविधान में पुरानी व्यवस्थाओं को बदलने या नए कानून बनाने का प्रावधान नहीं है ????
सब कुछ है ! पर ये मक्कार जानबूझकर कुछ नहीं करेंगे - कारण मैं बताता हूँ जनाब .... इन मक्कारों को ये 'सूट' नहीं करता - सभी की दुकानदारी बंद हो जायेगी - पार्टी पॉलिटिक्स की ऐसी की तैसी हो जायेगी - आलाकमान की वाट लग जायेगी - स्थापित बपौतियाँ नेस्तनाबूद हो जाएंगी .... आलाकमान टिकट किसी को देगा वो जीत के नेता किसी और को बना देगा - चुनाव में कालाधन कोई लगाएगा पर उसका मज़ा कोई और ले जाएगा .... इसलिए - "नहीं नहीं और नहीं - बिलकुल नहीं" !!!!
पर आगे मेरा कहना है कि मित्रों - ये मक्कार राजनेताओं को उनके स्वार्थ की बातें तो बहुत अच्छे से समझ आती हैं - पर हम सामान्य जन को अपने स्वार्थ की बातें कब समझ आएँगी ????
मेरा सुझाव मानें तो हम सब को सभी बातें समझ आ जाएंगी, यदि हम समझना चाहें - और यदि हम इन राजनीतिज्ञों के चंगुल से निकल इनकी भक्ति करना छोड़ इन पर सहज विश्वास करना छोड़ देवें - और फिर थोड़ा सा अपनी अकल का इस्तेमाल करें !!!!
अब इतना तो करना ही पड़ेगा - नहीं तो .... "नहीं नहीं और नहीं - बिलकुल भी नहीं" - समझे !!!!

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