Friday 21 November 2014

//// रंजीत सिन्हा के खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं - विरोध क्यों नहीं - इस्तीफ़ा क्यों नहीं ? ////

साफ़ दिख रहा है कि सारे कॉंग्रेसी और भाजपाई रंजीत सिन्हा से डरे सहमे चुप हो दड़बों में दुबके बैठे हैं - कोई इस्तीफे तक की मांग नहीं कर रहा है - सब बिलकुल सूत-सांवल में पप्पू बने हुए हैं ....
लानत है इनकी ऐसी राजनीति पर ....
कारण है कि ये दोनों ही पार्टियों के नेता या इनकी सहयोगी पार्टियों के नेता ही तो हैं जिनसे CBI की मिलीभगत रही है और इनसे मिलकर ही तो राजनेता अपना उल्लू सीधा करते आये हैं!!!!
गौर करियेगा कि शायद आरुषि हत्याकांड के बाद CBI के पास कभी भी गैरराजनीतिक महत्वपूर्ण चर्चित केस नहीं रहा - CBI के पास जो महत्त्वपूर्ण चर्चित घोटालों और भ्रष्टाचार या षड़यंत्र के जितने भी केस चल रहे हैं उनमे किसी ना किसी पार्टी या नेताओं का ही तो सीधा-सीधा संबंध रहा है - बचे खुचे कुछ केस हत्या या डकैती संबंधित हो सकते हैं - पर उनमें भी ज्यादातर में नेता का ही संबंध होना अपेक्षित है !!!!
अस्तु मेरा मानना है कि जिस प्रकार से चोर और सिपाही का रिश्ता होता है ऐसे ही नेता और CBI का रिश्ता स्थापित है ....
और इसलिए ऐसी CBI जिस पर कोर्ट भी टिप्पणी करने से ये कहते हुए बच निकली कि यदि सब कुछ कह दिया तो CBI की विश्वसनीयता पर ही बट्टा लग जाएगा - आप भरोसा नहीं कर सकते -
और अब जबकि नए प्रमुख की नियुक्ति भी ऐसे ही राजनीतिज्ञों के हाथ में है जो स्वयं संदेह के घेरे में हों - और नियुक्ति प्रक्रिया पर पहले से ही शंका कुशंका की छाया हो, तो स्थिति भयावह प्रतीत होती है .... अब मैं यह भी तो नहीं कह सकता कि पूरे प्रकरण की CBI जांच होनी चाहिए .... और 'लोकपाल' का हश्र और नियुक्ति में विलम्ब आदि के कारण तो स्थिति और भयावह हो जाती है !!!!
पर शायद अब हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते - बस केवल सावधान हो अपने को भक्त बनने से रोक कर आगे के लिए भगवान से प्रार्थना ही कर सकते हैं कि - हे ईश्वर सब ठीक हो !!!!

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