Tuesday 16 December 2014

//// पेशावर में आतंकवादी हमले में 100 से अधिक मासूम बच्चों की मौत - कहीं जड़ में "धर्म" का कीड़ा तो नहीं ? ////

मेरी आज निंदा करने की हिम्मत जवाब दे रही है ....
मैं केवल रो सकता हूँ ....
पर कुछ हिम्मत जुटा आज ज़ुर्रत करता हूँ हिमाकत करता हूँ यह पूछने की कि .....
हम कब तक यह मानते रहेंगे की सब ईश्वर अल्लाह की मर्ज़ी से होता है ?
हम कब ये यथार्थ स्वीकार करेंगे की बहुत कुछ हैवान की मर्ज़ी से भी होता है ?
और हम कब तक यह मानने से कतराते रहेंगे की आजकल ये धर्म का कीड़ा ही तो है जो इंसान को हैवान बनाने का कारण बना हुआ है ????
क्या आप आज भी यह नहीं सोचेंगे कि जिस आतंकवादी ने जिन मासूम बच्चों को मारा है उसकी उन बच्चों से ना तो व्यक्तिगत दुश्मनी थी या जान पहचान ही थी ....और संभवतः वह खुद भी जानते बूझते स्वाहाः हुआ - शायद धर्म के ही नाम पर - जड़ में वही धार्मिक आतंकवाद - धार्मिक उन्माद - धार्मिक कट्टरवाद - धार्मिक अंधवाद - धार्मिक एकता - या धार्मिक धंधा ????
हम कब तक अपने मन को बहलाते रहेंगे यह कह सुन और मान कर कि कोई धर्म बुरा नहीं है - सब धर्म अच्छी बातों की प्रेरणा ही तो देते हैं ? पर आगे प्रश्न नहीं करेंगे कि फिर ये सब अनर्थ क्यों ?
हम कब तक ये नहीं समझेंगे कि धर्म से बड़ी है "इंसानियत" - "मानवता" ????
मित्रों मेरा मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है - अपितु मेरा प्रयास है कि शायद इस धर्म के कीड़े से मानवता और इंसानियत को बचाने हेतु अपनी बुद्धि अनुसार छोटा सा प्रयास कर सकूँ ....
// उन सभी मासूम बच्चों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित // .... इस माफ़ी के साथ कि हम विज्ञान में इतनी तरक्की करने के बावजूद उन्हें इस धार्मिक त्रासदी से नहीं बचा पाये !!!!

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