Wednesday 17 December 2014

//// क्या हमें बबूल और आम के आगे भी मनन चिंतन की आवश्यकता तो नहीं ?? ////

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से पाये ?
पाकिस्तान के पेशावर में तालिबान के वहशियाना हमले के संदर्भ में उपरोक्त बात और इसी आशय की अनेक बातें कहीं जा रही हैं - खूब कही जा रही हैं - और सही कही जा रही हैं .... क्योंकि अब इतना तो भक्त को भी मालूम है कि आम आम के पेड़ पर लगते हैं .... और मैं तो इसके एक कदम और आगे लापरवाही से भी सोचते हुए एवं एडा बन ये भी कहने का साहस कर सकता हूँ कि - " जिस पेड़ में आम लगते हैं उस पेड़ को आम का पेड़ कहते हैं " !!!!
और यदि मैं इसी बात को थोड़ा और आगे बढ़ाऊं तो मैं ये भी कह सकता हूँ कि - यदि आप को आम चाहिए तो आपको आम का पेड़ ही लगाना भी पड़ेगा .... पर याद रहे कि आम की भी कई जातियां होती हैं तो इसलिए आपको जिस जाति का आम चाहिए जैसे कि कलमी दशहरी लंगड़ा बादाम आदि तो पेड़ भी उसी जाति का ही तो लगाना होगा ....है ना !!!!
और भी गूढ़ बात बताते चलूँ कि यदि आपको मीठे संतरे चाहिए और आप गलती से मिलता जुलता उसी जाति का निम्बू का पेड़ लगा बैठे तो मान के चलिए कि आपको जो प्राप्त होगा वो आपके दांत खट्टे कर देगा !!!!
उपरोक्त बकवास से मैं आपको यह समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि शायद तालिबान को पाकिस्तान में समझने की गलती हुई .... और दुष्परिणाम आपके सामने है ....
पर कहीं ऐसा तो नहीं कि हम भी ठीक उसी तरह विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल और कई छोटे छोटे आरएसएस के अनुषांगिक हिन्दू धर्म आधारित संस्थाओं को समझने में भूल कर रहे हैं - ठीक उसी तरह जैसे संतरे की चाह में हम निम्बू बो गए हैं - या निम्बू ही क्यों - ककऊआ - करेला - कद्दू - बेशरम की झाडी - आदि इत्यादि - या हाफुस की जगह चूसने वाले छोटे खट्टे देसी आम ????
और अंत में बताते चलूँ कि केवल उपरोक्त कहावत ही सही हो ऐसा भी कहाँ है .... इससे भी अच्छी कहावतें हैं जैसे कि .... " समझदार वही है जो सुख के समय दुःख कि कल्पना कर दुःख को टालने के लिए सही कदम ससमय उठा ले " .... और .... " समझदार वही जो दूसरे के अनुभव से ही सीख ले ले " .... और .... " सबसे बड़ा बेवक़ूफ़ वो जो घास फूस के मकान में रहते हुए दूसरे के लकड़ी के मकान को जलते देख तमाम ज्ञान बघार दे " !!!!
अतः पुनः सावधान रहिएगा !!!!

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