Thursday 4 June 2015

//// लटकती लीची और टपकते आम का तो पता नहीं - पर पड़ते जूते....////


आजकल आम बहुत मॅहगे हैं - लीची भी अभी-अभी मार्केट में आई है पर वो भी मॅहगी  - यानि आम आदमी के लिए आम लीची का सीज़न तो है पर मार्केट तो ठंडा ही समझो ....

और गरीब के लिए तो समझो न्यूटन भी गलत ही है .... क्योंकि अब पेड़ पर लगा आम टपक के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से नीचे नहीं आता - अब आम लगता तो है पर टपकता नहीं - और जाता कहाँ है पता नहीं !!!!

पर बावजूद इसके आजकल आम लीची का मामला गरमाया हुआ है - कारण नितीश कुमार ने मांझी के सरकारी बंगले में लगे आम लीची के पेड़ों पर बक़ायदा पहरा बैठा दिया है ....

और इसलिए अब मांझी, मांझी के समर्थक, मांझी को उकसाने उचकाने वाले सभी भाजपाई और भाजपाइयों के शिंकजे में फंसे खबरिया मोदिया सभी नितीश की निंदा करने लगे हैं कि देखो इतनी छोटी सी बात पर ऐसी कार्यवाही ????

कुछ अक्ल से पैदल तो सैंकड़ों मील दूर बैठे ही अक्ल से माँझी के बंगले के बगीचे में घुस चारपाई लगा कैलकुलेटर ले बैठ गए हैं - कि पेड़ कुल कितने हैं - एक पेड़ पर कितने किलो आम कितने किलो लीची - बाजार भाव से कुल मूल्य .... फिर पहरे पर लगाए जवानों की संख्या - उनकी औसत दैनिक आय - उनके भत्ते - उनके आने जाने का खर्चा - यानि पहरे पर खर्च कुल राशि ....

और इतनी कसरत कर ये मोदिया लोग कूद पड़े हैं मैदान में ये सिद्ध करने के लिए कि नितीश कितना गलत कर रहे है .... और डायलॉग भी मार रहे हैं कि - नितीश को आम की चिंता है आवाम की नहीं !!!!

ऐसे सभी धूर्तों को मैं धिक्कारता हूँ और कहना चाहूँगा कि मांझी क्योंकि उस बंगले में अवैध रूप से रह रहे हैं इसलिए उनका एक भी आम और एक भी लीची के छिलके तक पर कोई हक़ नहीं बनता - हराम की बहुत खा ली अब तो कायदे कानून से बँगला खाली करो और चलते बनो ....

और नितीश को आम और आवाम की चिंता करने दो - क्योंकि ऐसा तो कोई धूर्त मूर्ख ही सोच और कह सकता है कि आम और आवाम की चिंता एक साथ नहीं की जा सकती - हो सकता है भाजपाइयों या मांझी से ऐसा ना करते बनता हो पर नितीश सबकी चिंता करने में सक्षम हैं .... और यदि नितीश आवाम की चिंता नहीं करेंगे तो आवाम ये मामला भी देख लेगा - वो नितीश को भी आम से वंचित कर देगा .... पर इसका ये मतलब नहीं कि अवैध रूप से कब्ज़ा करने वाले सही ठहराए जाएंगे और वे बंगले में बैठे हराम के आम खाएंगे !!!!

और आम लीची को देखने का शौक हो तो ठेलों पर देखो - और खाने का शौक हो तो जेब ढीली करना सीखो - और यदि फ्री में ही खाने की ज़िद हो आई हो तो साथ में जूते खाने की भी तैयारी रखो !!

लटकती लीची और टपकते आम का तो पता नहीं - पर पड़ते जूते ज़रूर रसीले लगेंगे - पक्का !!!!

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