Thursday 11 June 2015

//// म्यांमार युद्ध पराक्रम के बाद भी दुष्परिणाम क्यों ??....////


मैनें महसूस किया है कि देश की प्रतिष्ठा से जुड़े किसी भी मुद्दे में मोदी सरकार जब भी कोई अच्छा कार्य करती है तो उनके सभी समर्थकों का सीना फूल जाता है - और फूलना भी चाहिए - वो खून ही क्या जो देश के लिए खौल ना जाए ....

पर शायद उन्हें पता नहीं होगा कि सीना तो प्रत्येक भारतीय का ही फूलता है भले ही वो मोदी का घोर विरोधी क्यों ना हो .... पर जब ऐसे मुद्दे पर राजनीति होती है तो शायद दोनों पक्षों को बुरा लगता है और फिर राजनीति के हिसाब से भी कुछ डायलॉग का आदान प्रदान स्वाभाविक है - भले ही दोनों पक्ष ये कहते रहें कि इस विषय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए - हम तो कर भी नहीं रहे - पर विरोधी कर रहे हैं .... आदि !!!!

लेकिन मुझे सबसे ज्यादा दुःख उस वक्त होता है जब मोदी जी के कृत्य या अकर्मण्यता देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती है - और उनके देशभक्त समर्थक शर्मिंदा होते हैं या मायूस हो जाते हैं ....

और ऐसा इसलिए कि मैं कितना भी मोदी विरोधी क्यूँ न होऊं - पर मैं कम से कम देश की प्रतिष्ठा विषयक मोदी जी को १००% सफल और केवल सफल होते ही देखना चाहता हूँ ....

और अभी हाल में म्यांमार पराक्रम के बाद हो रही बयानबाज़ी और राजनीति के कारण जिसके कारण मेरे आंकलन अनुसार देश की प्रतिष्ठा को ठेस लग रही है मैं क्षुब्ध हूँ .... और क्षुब्ध तो म्यांमार भी होगा जिसे कहना पड़ा है कि ऑपरेशन उसकी धरती पर नहीं हुआ था - शायद झूठ - शायद अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक मजबूरियों के कारण - शायद भारत सरकार के बड़बोलेपन के कारण ????

अस्तु पुनः कहना चाहूँगा कि विदेश और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर "मोदी छाप" कदापि उपयुक्त नहीं है - शायद "मनमोहन छाप" बेहतर थी - या दोनों की "मिश्रित छाप" श्रेयस्कर होगी !!!!

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