Monday 4 May 2015

//// अरुण शौरी में खास बात क्या ?? और मोदी क्या ?? ....////


ऐसे समय जब मोदी सरकार एक साल पूरा करने जा रही है, अरुण शौरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार की तीखी आलोचना करी है .... और कहा है ....

मोदी सरकार की आर्थिक नीति दिशाहीन है ....
सरकार के पास दावे हैं लेकिन आर्थिक योजनाओं का कोई खाका नहीं है ....
सरकार सिर्फ हेडलाइंस में बने रहने के लिए काम कर रही है ....
महंगाई, वित्तीय घाटा, एफडीआई, कोल ब्लॉक और स्पेक्ट्रम नीलामी जैसी चीजों के नतीजे कुछ ऐसे ही आने थे - इसमें सरकार ने कुछ नहीं किया है .... 
समझ नहीं आता कि उन्होंने सूट को लिया क्यों और फिर उसे पहना क्यों ? आप गांधीजी का नाम लेकर इस तरह की चीजें नहीं पहन सकते ....
मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली की त्रिमूर्ति पार्टी को चला रही है ....
इन्होंने विपक्ष को नाखुश किया है और बीजेपी के सदस्यों को भी भयभीत किया है ....
प्रधानमंत्री ने दक्षिणपंथी गुटों की ओर से ईसाइयों और उनकी संस्थाओं पर हो रहे हमलों पर अपनी आंखें बंद कर ली हैं .... आदि !!!!

मैं तो हमेशा से अरुण शौरी का प्रशंसक रहा हूँ - और अब जब उन्होंने मोदी की निंदा करी तो मुझे वो और ज्ञानी लगने लगे - और इसका शायद एक कारण ये भी है कि मुझे भी मोदी अब निंदनीय ही लगते आए हैं .... और यह भी एक संयोग ही है कि मोदी मुझे पहले निंदनीय नहीं लगते थे और शायद मुझे उनसे आशाएं भी बहुत थीं - जैसा की अरुण शौरी को भी रही ही होंगी क्योंकि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की वकालत भी तो शायद सबसे पहले अरुण शौरी ने ही करी थी ....

लेकिन मैं सोच रहा था कि अरुण शौरी ने सब कुछ कहा पर फिर भी कहीं कसर रह गई है - जैसे उन्होंने मोदी को सीधे सीधे फेंकू या बड़बोला क्यों नहीं कहा ? - क्यों नहीं कहा कि मोदी गरीबों की रेड़ मारने पर तुले हैं - मोदी सरकार उद्योगपति रक्षक गरीब भक्षक है - मोदी सरकार सांप्रदायिक है - मोदी सरकार धर्म और राजनीती का घालमेल करती है - मोदी सरकार अभी तक असफल रही है - एक भी वायदा पूरा नहीं कर सकी है - मोदी अहंकारी हैं - मोदी लफ़्फ़ाज़ हैं असहिष्णु हैं - मोदी नाकाबिल हैं - मोदी अर्थहीन हैं - मोदी को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए - मोदी को हटा देना चाहिए - आदि ??

पर जब एक बार फिर मैनें गौर से शौरी की बातों को पढ़ा तो लगा - शायद शौरी जी ने ये सब कह तो दिया है - पर अपने अंदाज़ में अपनी नपी तुली शालीन भाषा में अपनी मर्यादा में रहते हुए - और तब मुझे लगा कि शौरी जी बुद्धिजीवी क्यों कहलाते हैं ....

पर मित्रो कृपया इसका ये मतलब ना निकाल लें कि शौरी जी बुद्धिजीवी और मैं बुद्धुजीवी .... क्योंकि अंदाज़े बयान ही तो अलग है - पर आखिरकार मुद्दे की बात तो एक ही है .... है ना !!!!

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