Wednesday 27 May 2015

//// इन्हें शर्म क्यों नहीं आती ??....////


एक बार फिर गर्मी .. आम जामुन की फसल .... और गुर्जरों का आंदोलन - एक बार फिर अपने चरम पर - अपने चिरपरिचित घटिया अंदाज़ में ....

वही पहले दिन एक आध ट्रेन रोकी - फिर पटरियों पर कब्ज़ा और तोड़फोड़ - फिर उसपर तम्बू - फिर हज़ारों बैठे मिले पटरी पर - फिर कुछ अलग जगह रेल को रोक रेल के इंजिन पर चढ़ती लम्पट जैसी भीड़ - फिर राजमार्गों पर गुंडागर्दी आगजनी चक्काजाम ..... फिर बातचीत के दौर की पेशकश कभी इधर से कभी उधर से - फिर रस्साकशी कि बातचीत कौन करेगा कब करेगा कहाँ करेगा - पटरी पर या सचिवालय में - और फिर बातचीत होगी फिर टूट जायेगी - फिर बातचीत के दौरे पड़ेंगे - दूसरा दौर तीसरा दौर ....

और हर बार जैसे ही मीडिया का एक जैसा कवरेज - एक जैसी रिपोर्टिंग - एक जैसी बहस - एक जैसे साक्षात्कार .... वही करोड़ीमल - वही बैसला - वही मूंछे - वही तेवर - वही भाषा .... और चिंता और खेद के साथ वही न्यायालय वही क़ानून वही निर्णय ....

और इस बीच - हर बार जैसे ही हज़्ज़ारों करोड़ों का सरकारी नुकसान और असंलिप्त जनता को अकल्पनीय पीड़ा और परेशानी !!!! ना लेना ना देना बस सहन करना ????

बस कुछ अलग है तो यह कि इस बार केंद्र में मोदी सरकार है ....

इसलिए मैं तो अब केवल यह देख रहा हूँ कि सार्वजनिक सरकारी संपत्ति का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई की जिम्मेदारी किसकी ?? .... और जनता को हुई परेशानी की जवाबदारी किसकी ?? .... राजस्थान की महारानी या हमारे दिल्ली के चौकीदार और सेवक की ????

या फिर कुछ ही दिन बाद - इधर उधर राजनीतिक रोटियों की अल्टा-पल्टी के बाद डायलॉग सुनने को मिलेंगे .... देखिये हम सूट-बूट नहीं सूझ-बूझ की सरकार हैं - हमने सूझ-बूझ से पूरा मसला सुलटा दिया - हमें सरकार चलाना आता है - हमें शासन करते आता है !!!!

और मैं व्यथित हो सोच रहा होऊंगा - क्या इन्हें शर्म भी आती है कि नहीं ????

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