Tuesday 14 April 2015

//// विघ्नसंतोषियों की पारदर्शिता - तौबा !! .... 'स्वराज' के नाम पर दूसरों के 'राज' पर नज़र - तौबा-तौबा !!....////


आज 'आप' पार्टी के बागियों का बहुप्रतीक्षित पूर्ण-अपेक्षित जमघट हो ही गया ....
सब मिले - प्यार से मिले - उत्साह से मिले - जोश से मिले - पारदर्शिता से मिले - खुल के मिले - और संवाद किया ....

संवाद किया 'स्वराज' के नाम पर - पर क्योंकि संवाद में पारदर्शिता थी तो मुझे यह साफ़ हो गया कि संवाद 'स्वराज' पर नहीं होकर मुख्यतः 'केजरीराज' पर ही था .... सबने संवाद किया और निष्कर्ष पर पहुंचे कि 'केजरीराज' बहुत गंदा, मूल्यों से झटका भटका और निम्नश्रेणी का राज हो गया है ....

फिर महान नेताओं के भाषण हुए - जिसमें यह स्वीकार कर लिया गया कि 'आप' के विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़ना तो टेढ़ी खीर होगी - और नई पार्टी बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं !!!!

फिर करवायी गई वोटिंग - कि आगे क्या करना - या क्या नहीं करना ????

और लगभग २५ % समझदारों द्वारा यह राय रखी गई कि नई पार्टी बनानी चाहिए .... जबकि लगभग ७० % आंदोलित कार्यकर्ताओं ने यह राय रखी कि पार्टी (यानि 'आप' पार्टी) में ही रहकर संघर्ष किया जाए .... और क्योंकि यही माना गया कि 'काड़ी-ऊँगली' करना ज्यादा सुविधाजनक है - अतः यह तय कर लिया गया कि बहुमत के अनुसार संघर्ष ही किया जाए !!!!

यानि इसे साहित्यिक भाषा में समझा जाए तो यह तय हो गया है कि - कुछ विघ्नसंतोषियों को मजबूरी में पारदर्शिता और बहुमत से यह निर्णय करना पड़ा है कि वो केवल दूसरों के कार्य में विघ्न पैदा कर संतोष धन प्राप्त करते रहेंगे ....

और राजनीतिक शुद्ध हिंदी भाषा में समझा जाय तो टुच्चों ने यह तय किया है कि - हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी डुबाने की पूरी कोशिश करेंगे .... 

मित्रो !! मैंने अपने कल के लेख में ही लिखा था कि - 'पारदर्शिता' या 'नंगाईयत' का सही-सही प्रायोगिक मतलब और आशय आपको कल ही समझ में आ जाएगा .... और शायद मेरा दावा सही निकला ....

मुझे आज बहुत पारदर्शिता से नंगाईयत दिख गई है - विघ्नसंतोषियों की नंगाईयत !!!!

और संतोष भी हुआ है कि - 'आप' पार्टी किसी टुच्चे की बपौती कदापि नहीं हो सकती ....
और विश्वास भी हुआ कि - 'आप' पार्टी पर काबिल संस्थापक केजरीवाल का ही वर्चस्व बना रहना चाहिए और बना ही रहेगा !!!!

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